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2015 के नाम एक संदेश

कुछ कहना है ©
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डियर 2015,
31 दिसंबर की रात जब दुनिया शराब और शबाब के आगोश में तुम्हारे यानि 2015 के स्वागत में मदमस्त थी, ठीक उसी समय मैं कमरे की खिड़की से सटा आसमान की ओर एकटक निहारे जा रहा था। बाहर जश्न मन रहा था। लोग पटाखे-फुलझडिय़ा छुटा कर तुम्हारे आगमन का स्वागत कर रहे थे। जाने क्यों ऐसा लग रहा था कि आसमान से उठती हर सतरंगी छटा में दिखावटी चमक थी। जाने क्यों इस चमक के भीतर झांक कर देख लेने की जिज्ञासा हो रही थी। इस रोशनी में ही 2015 की एक झलक पा लेने की लालसा हो रही थी। जब तक अपने मन को आसमान में बिखरी उस मनमोहक आतिशी चमक के निकट ले जाता तब तक वह रोशनी, वह चमक मद्धिम हो चुकी होती और बीच रास्ते से ही मन को सांत्वना देते हुए बेमन लौट आता। एक के बाद एक लगातार हो रही आतिशबाजी से आसमान रंगीला हो चला था, मानों वह कुछ दिखाना चाहता था। जश्न में हो रही यह आशिबाजी किसी का मनमोह रही थी तो यकायक उठती यह रोशनी किसी का कलेजा कंपा रही थी। नीले गगन पर रंग बिरंगी रोशनी की मखमली चादर धरती पर कुछ दिखाना चाह रही थी जो लोगों की नजरों से ओझिल था। वह क्या था जो लोग महसूस नहीं कर पा रहे थे?
शायद वह बीते साल की झलकियां थी। यह वह झलकियां थी जो खुद से नजरें चुरा रही थी। खुद को छिपाने का प्रयास कर रहीं थी। आसमान से पड़ती चमकीली रोशनी से धरती की अधनंगी हकीकत लज्जित महसूस कर रही थी। मानो जमीन के अंदर वह खुद की कब्र खोद लेना चाहती हों। शायद उनका कब्र में ही समा जान बेहतर रहेगा। ऐसी कब्र में जहां से उनका भूत भी कभी बाहर न आ सके।
जाने क्यूं ऐसा लग लग रहा था कि सिर्फ तारीख ही बदल रही है और कुछ नहीं। लेकिन वास्तविकता भी यही थी कि सिर्फ तारीख ही बदल रही थी शायद और कुछ नहीं। काश कुछ बदल पाता। जाते-जाते 2014 रो रहा था। चमकीली रोशनी के पीछे दर्द भरे आंसू थे। यह वही आंसू थे जो हजारों निर्दोषों और मासूमों का खून पी कर जन्मे थे। यह वही आंसू थे जो शायद कभी किसी की आंखों में नहीं आना आना चाहते थे। यह वही आंसू थे जो सूख जाना पसंद करेंगे।
जाते-जाते पिछला साल आने वाले साल को अपनी हकीकत से रूबरू करा रहा था। मानों उसे अपने बारे में सब कुछ बता देना चाहता था। उसे अच्छे-बुरे से परिचित करा देना चाहता था। उसे दुनिया की समझ करा देना चाहता था। ऐसा आभास हो रहा था जैसे एक पिता अपने बच्चे को आने वाले कल के बारे में समझा रहा हो, उसे दुनिया दारी से परिचित करा रहा हो। दुनिया से विदा लेने से पहले वह उसे अपना सर्वस्व उसके हवाले कर देना चाह रहा था। और उससे गुजारिश कर रहा था कि तुम वह गलती मत दोहराना जो मेरे समय में हुइ्र्र। इसी तरह 2014 आसमान में पटाखों की आवाज के साथ चीख-चीख कर 2015  से बोल रहा था कि यह देखो, यह जो निर्दोष तुम्हारे लिए जश्न मना रहे हैं इन्हे कभी निराश मत करना।
वह देखो जो छोटे-छोटे मासूम अपने घरों में इस वक्त अपनी मां के आंचल में सिर छिपा कर सोए हुए हैं, कल सुबह जब तुम्हारा दिन होगा वह ढ़ेर सारी खुशियों, उम्मीदों के साथ स्कूल जाएंगे। उनको फिर से वापस आने का मौका देना । मेरी तरह, पेशावर में उन मासूमों की हत्या का कलंक तुम अपने सर पर मत लेना। उनको जीने देना। एक दिन वही इस दुनिया की हकीकत बदलेंगे। और वह देखों जो बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन , हवाई अड्डों पर जो लोग अपने घरों को जा रहे हैं, वह जो अपने सपनों को साकार करने जा रहे हैं, वह जो अपने प्रियतमों से मिलने जा रहे हैं, उनकी खुशी देखो, उनकी यह खुशी हमेशा बरकरार रखना। उन परिजनों को देखो उन बच्चों को देखो जो अपने पिता का इंतजार कर रहे हैं जिनके साए में वह खुद को महफूज समझते हैं। उनके इंतजार को इंतजार ही मत रहने देना।
इसी तरह वह सारी रात तुम्हे यानि 2015 को समझाता रहा, देश-दुनिया से परिचित कराता रहा। इस बीच वह तुम्हे  सीरिया, इराक ले गया। वहां के लोगों का दर्द दिखाया। लंदन,न्यूयॉर्क ले गया। दिल्ली, पेरिस भी ले गया। मोदी-ओबामा से मिलवाया। कैलाश-मलाला से मिलवाया। अलकायदा, आइएस और तहरीक-ए-तालिबान से…! नहीं..नहीं.. इनसे नहीं मिलवा सकता। एक पिता अपने बच्चे को लफंगों की संगत में कभी नहीं देख सकता। रात भर यही सिलसिला चलता रहा। रात का घुप्प अंधेरा छंटने को था। सूरज की पहली किरण धरा पर अपनी छटा बिखेरने को आतुर थी। 2014 दम तोड़ चुका था और अगले ही छण में 2015 यानी कि तुम धरती में प्रवेश कर रहे थे। आते-आते तुमसे एक गुजारिश मेरी भी। याद रखना दुनिया बहुत बहकाऊ है, अच्छाई और बुराई से घिरी हुई है। उम्मीद है कि तुम नहीं बहकोगे। तुम अच्छाई का दामन थाम कर लोगों की जिंदगी में सुख,  चैन, अमन , शांति की बारिश कर दोगे। इसी उम्मीद के साथ अब हर सुबह होगी तुमसे मुलाकात और 365 दिन तक रहेगा तुम्हारा साथ।

तुम्हारे अपने
समस्त दुनिया वासी

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