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मौत के मुंह से निकल कर

कुछ कहना है ©
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आज मुझे अपने मित्र के कुंभ नगरी से वापस लौटने की खबर मिलते ही मैं उनके हाल चाल जानने जा पहुंचा। पहुंच कर देखा कि वे भगवान का लाख-लाख शुक्र अदा किए जा रहे थे। जब मैंने उनसे इसका कारण पूंछा तो वे तपाक से बोल उठे ‘अरे भई शुक्र अदा करने की बात ही है मौत के मुंह से निकल कर जो आ रहा हूं।’
इतना सुनते ही मैंने अपनी कुर्सी संभाल कर उनके चेहरे की ओर ताकते हुए कौतूहलतावश उनसे पूंछा ‘क्यों ऐसा क्या हो गया था।’ इस पर उन्होने मुझे फटकारते हुए पूंछा तुम्हे पता नहीं 10 फरवरी की मौनी आमावस्या के दिन वाली घटना। इस पर मैं बोला हां मुझे याद है और ये भी याद है कि उस हादसे में 35 लोगों के मारे जाने की पुष्टि भी हुई थी और यह घटना मौनी आमावस्या के शाही स्नान के लिए उमड़ी भारी भीड़ में मची भगदड़ के कारण हुई थी। इस पर वे बोले बस-बस उसी भीड़ में तो मैं भी था। यह सुनकर मेरी आंखे फटी की फटी रह गईं। फिर मैंने उनसे पूरी घटना का सिलसिलेवार वर्णन करने का अनुरोध किया।
तब तक चाय आ चुकी थी और उन्होने थोड़ा रुकते हुए चाय की एक लंबी शिप ली और फिर शुरू हो गए। उन्होनें बताया कि ‘‘10 फरवरी की शाम को सवा तीन बजे जब मैं वापस रायबरेली जाने के लिए सीधे बस स्टाप पहुंचा वहां पहुंच कर मैंने देखा कि वहां पर कोई बस थी ही नहीं। और जो बसें आ भी रहीं थी लोग उनमें दरवाजों के बजाय खिड़कियों से अंदर घुस रहे थे। यह देखकर मैं बस में बैठने का ख्याल त्याग कर पैदल ही सिविल लाइंस स्थित रेलवे स्टेशन पहुंचा। वहां तक पहुंचते पहुंचते साढे़ चार बज चुका था। वहां पहुंच कर मैंने पाया कि यहां तो क्षमता से कई गुना ज्यादा भीड़ है। चूंकि मुझे जाना जरूरी था इसलिए मैंने भीड़ में घुसने का फैसला किया। भीड़ इतनी विकराल थी कि चारो ओर सिर्फ लोगों के सर ही सर नजर आ रहे थे। खैर जैसे-तैसे मैंनेे भीड़ के बीच में अपना संतुलन बनाए रखा। और बेहद धीमी कछुए से भी धीमी चाल से चलते हुए या यूं कह सकते हैं कि भीड़ के प्रेशर से खिसकते हुए किसी तरह प्लेट फाॅर्म की सीढि़यों तक जा पहुंचा। वहां पहुंच कर देखा कि वहां पहले से मौजूद तीन बी एस एफ के जवान और एक दरोगा रुक-रुक कर भीड़ में लाठि़यां भी चला रहे थे। फिर मैं जैसे तैसे उनकी लाठि़यों से बचते हुए सीढि़यों से गुजर कर प्लेट फाॅर्म तक पहुंचा। अभी गाड़ी आने में समय था। यह सब करते हुए छै बज गया। अभी मैं टेन का इंतजार ही कर रहा था कि अचानक एक शोर सुनाई दिया। जब मैंने मुड़ कर देखा तो भीड़ तितर-बितर हो कर भाग रही थी और देखते ही देखते रेलिंग भीड़ का दबाव नही सह पाई और धाराशायी होकर टूट गई। मेरी आंखो के सामने लोग उस टूटी रेलिंग से नीचे गिर रहे थे और मैं यह सब असहाय होकर ताक रहा था। और कुछ लोग उस बेकाबू भीड़ में अपना संतुलन खो बैठे और वहीं औंधे मुंह जमीन पर गिर पडे़ और दोबारा नहीं उठ सके और उनके उपर से हजारों कदम गुजर गए। अपनी आंखो के सामने मौत का यह नंगनाच देखकर मेरा मन विचलित हो उठा और यह सब मुझसे देखा नहीं जा रहा था। मैं काफी घबरा गया था। और रायबरेली जाने वाली गाड़ी का इंतजार न कर फतेहपुर साइड जा रही गाड़ी में जा घुसा और वहां से निकल कर मैंने राहत की सांस ली और मुझे ऐसा लग रहा था मानों मैं मौत के मुंह से निकल कर आया हूं।’’
अब चाय भी खत्म हो चुकी थी और कहानी भी। कुछ देर चुप रहने के बाद वे बोले कल सुबह जल्दी उठ कर पास स्थित मंदिर में पांच सौ एक रूपए का प्रसाद चढ़ाना है। शुक्र है उपर वाले का। फिर मैंने उनसे चलने की इज़ाजत मांगी। रास्ते में मेरे मन में कई तरह के सवाल उठते रहे। अभी तक मैंनेे यह सुना था कि कुंभ नगरी में मृत्यु प्राप्त होने से मोक्ष मिलता है। तो क्या उस हादसे में मारे गए लोगों को मोक्ष प्राप्त हुआ होगा। अगर उन्हे यह मिल भी गया होगा तो ऐसे मोक्ष का क्या फायदा। अभी वे लोग जीना चाहते थे उनकी असमय मृत्यु वाकई दर्दनाक है।

प्रशांत सिंह

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