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एण्ड देन क्लिक टु ‘‘लाॅग इन’’ और इसके साथ ही रोहन एक अद्भुत विलक्षण दुनिया में प्रवेेश कर चुका था। अभी कुछ एक मिनट ही बीते थे कि वह इसमें इतना तल्लीन हो चुका था कि उसे मुझे अपने साथ होने का आभास ही नहीं रहा। अब वह शारीरिक रूप से तो मेरे साथ था लेकिन मानसिक तौर से कहीं और मगन था। उसकी एकाग्रता को भांप कर मैं भी उसे डिस्टर्ब करने का दुस्साहस न करते हुए मन ही मन इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स को कोसने लगा। इतने में ही अचानक कानों में उसकी आवाज सुनाई पड़ी ‘यार, आज 12 बजे मोतीझील ग्राउन्ड में देल्ही रेप विक्टिम के लिए कैंडिल मार्च है, चलेेगा तू’। मैने भी बिना देरी किए हामी भर दी।
यह वाकया उस समय का है जब देश दिल्ली में हुए शर्मनाक गैंगरेप को लेकर गुस्से से उबल रहा था। मौजूदा दौर में सोशल नेटवर्किंग साइट्स को लेकर इस तरह के वाकये आम हो गए हैं। आज कल की युवा पीढ़ी खुद से ज्यादा इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर विश्वास करने लगे हैं। वे अपनी बात को सीधे लोगों से कहने के बजाय सोशल मीडिया में कहने में सहज महसूस करते हैं। सोशल मीडिया आज युवाओं के लिए सबसे बड़ा हथियार बन गया है। हाल ही में ऐसे कई मौके आए जब युवाओं ने सोशल मीडिया का सहारा लेकर सरकार को नतमस्तक कर दिया। चाहे हम बाल ठाकरे के निधन के शोक में बाजार बंद को लेकर फेसबुक में टिप्पणी करने वाली शाहीन और रेणुका हो या फिर देल्ही रेप केस की घटना के बाद पीडि़ता के समर्थन में सडकों पर उतरी भीड़। दिल्ली में प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तार एक युवती ने पुलिस वैन में बैठे-बैठे अपने फोन द्वारा लोगों के बीच सोशल मीडिया के माध्यम से संदेश भेजने शुरू कर दिए थे। उसकी ट्वीट को एक घंटे के भीतर 1700 से भी अधिक लोगों ने रिट्वीट किया था। हाल फिलहाल गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे द्वारा अपने भाषण में बीजेपी और आर एस एस द्वार भारत में हिन्दू आतंकवादी तैयार करने और पाक आतंकी हाफिज सईद को सर हाफिज सईद जी बालने को लेकर सोशल मीडिया में भी इसकी कड़ी आलोचना चल रही है।
अभी देश के 50-60 प्रतिशत युवओं ने ही मोबइल थामा था और मात्र 30-35 प्रतिशत युवा ही नियमित रूप से सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। जब अभी हालात यह हैं तो भविष्य का अंदाजा लगाया जा सकता हैं। एक सर्वे के अनुसार भारत में फेसबुक इस्तेमाल करने वाले 98 प्रतिशत 16 से 35 वर्ष के बीच का युवा वर्ग ही है। यहां पर वे स्वच्छंद हैं अपनी बात कहने के लिए, वे मुक्त हैं सामाजिक दबावों से, रूढि़यों स,े परम्पराओं से। कुल मिला कर वे यहां पर पूरी तरह स्वतंत्र हैं। कोई इसे लव अड्डा समझता है तो कोई चैटिंग प्वाइंट, कोई इसे प्रमोशनल टूल के तौर पर इस्तेमाल करता है तो कोई क्राइम प्लान के लिए। चीज़ एक तरीके अनेक।
यह तो सिर्फ भारत का परिदृश्य था जो टेक्नाॅलाजी के लिहाज से अमेरिका, ब्रिटेन, जापान जैसे देशों से काफी पिछड़ा हुआ है। विकसित देशों में सोशल मीडिया का इससे कहीं ज्यादा बोल बाला है। अधिकतर फेमस सोशल नेटवर्किंग साइट्स इन्ही देशों की उपज हैं। विदेशों में भी सोशल मीडिया कई बड़े बड़े उबाल ला चुका है। सोशल मीडिया लोगों के डेली रुटीन में शामिल होता जा रहा है। विश्व की सबसे लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक के दुनिया भर में एक बिलियन से भी ज्यादा यूज़र्स हैं। दुनिया भर में सोशल नेटवर्किंग साइट्स की तरफ लोगों का बढ़ता रूझान किसी बड़े बदलाव का संकेत दे रहा है। इसकी बढ़ती ताकत को देखकर यह कहा जा सकता है कि तीसरा विश्वयु़द्ध गोली बंदूक से नही बल्कि सोशल मीडिया के माध्यम से लड़ा जाएगा।
प्रशांत सिंह
9455879256
pprashant2206@gmail.com
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