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खामोशी के बंजर में गरजती AK-47

कुछ कहना है ©
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कोहरे वाली सर्द काली रात थी। चारो ओर सन्नाटा छाया हुआ था। एल ओ सी पर कोई हलचल नहीं थी। फिर यकायक कटीले तारों में कुछ हलचल सी होती है। सरहद पार से काली वेश-भूषा में, घातक हथियारों से लैस लगभग दर्जन भर लोग दबे पांव हमारी ओर बढ़े चले आ रहे थे। उनके बूटों की चाप ने सीमा पर गश्त कर रहे भारतीय जवानों के तन बदन में फुर्ती भर दी। दोनों ओर से जवाबी फायरिंग शुरू हो गई, और खामोशी से गुजरती हुई काली रात को विराम दे गई।
रात साढ़े ग्यारह बजे शुरू हुई फायरिंग ने गोलाबारी का रूप अखि़्तयार कर लिया। लगभग आधे धंटे तक चली मुठभेड़ मंे बार-बार भारत माता के वीर जवानों को चुनौती मिलती रही। मौका लगते ही सरहद पार से आए दुश्मनों ने दो भारतीय जवानों के सिर को धड़ से अलग कर दिए। और फुटबाल की तरह उनके सिरों को लुढ़काते हुए वापस लौट गए। अपने वतन की रक्षा करते करते शहीद हुए वे दो जवान थे लांस नायक हेमराज और सुधाकर सिंह।
पाक की इस एक और नापाक हरकत का शिकार हो गया भारतीय खेमा। 2003 में शांति वार्ता समझौते के बाद से अनेकों बार पाक ने भारत के साथ विश्वासघात किया है। पिछले एक साल में पाकिस्तान ने अपनी हदे लांघ कर लगभग तीन दर्जन बार सीज़ फायर का उल्लंघन किया है। भारत उसे लगातार शांति वार्ता का प्रस्ताव भेजता रहा, बदले में पाक उसे दहशतगर्द भेजता रहा। ऐसे में भारत को बार-बार उसके नापाक इरादों से दो-चार होना पड़ा, चाहे वह संसद पर हमला हो या मंुबई हमला हर बार पाकिस्तान का सुर्ख काली स्याहा से रंगा चेहरा बेनकाब होता रहा है। बार-बार दिल्ली को दहलाना, मुंबई को पिघलाना और गुलाबी नगरी जयपुर को खून के रंग से लाल कर देना पाकिस्तानियों के घिनौनेपन का पुख्ता प्रमाण है। सीमा पर गोलाबारी तो उसके लिए आम बात हो गई है।
भारत के खिलाफ नफरत पैदा करने में पाक के राज नेता भी कोई कसर नही बाकी रखते। सत्ता के लालच में कश्मीर को मुद्दा बनाकर चुनाव जीतने की चाह रखने वाले पाकिस्तानी नेता हमेशा भारत के खिलाफ जहर ही उगलते हैं। यहां तक कि अपने ही देश से निष्कासित होकर लंदन में गुजर बसर कर रहे पाक के पूर्व राष्टपति जनरल परवेज़ मुशर्रफ भी इस मसले में पाक का साथ दे रहे हैं। उन्होने यह भी कहा कि सर कलम करने जैसी अमानवीय घटना को पाकिस्तानी सैनिक अंजाम नही दे सकते, यह जरूर पाक को बदनाम करने के लिए भारत की ही कोई चाल है। हालांकि पाक नेता तो अपने उपर लगे इस आरोप को पहले ही सिरे से खारिज कर चुके हैं। पहले चोरी, बाद में सीना जोरी पर उतारू इन नेताओं की नजरें आगामी दो महीने बाद होने वाले आम चुनावों पर टिकी हुई हैं। पाकिस्तान का पुराना इतिहास उठा कर देखा जाए तो यह बात साफ नज़र आती है कि जिसने भी भारत के खिलाफ ज़हर उगला है वही पाक की सत्ता पर काबिज रह पाया हैं।
सीमा पर व्यतीत किए गए अपने आठ दिनों के अनुभवों को साझा कर रही एक जर्नलिस्ट के अनुसार सरहद पार तैनात सैनिको के अंदर भी इंसान बसता है। नफरत के इस रेगिस्तान में दोनो मुल्कों के सैनिक आपस में चुहल भी करते हैं। सीमा पार स्त्रियों के आदान-प्रदान के साथ साथ ही कुछ अवैध व्यापारों को भी सुगम बनाते हैं। सीमा के दोनों किनारों पर बसे गांवों के लोग दुश्मन मुल्क की गोलियों से नही बल्कि अपने ही मुल्क की गोलियों से भय खाते हैं। सबकुछ इसी प्रकार चलता रहता है। कभी-कभी तो दिखावे के लिए फर्जी मुठभेड़ भी होती हैं। सबसे खास बात यह है कि जब-जब पाक में राजनीतिक हलचल होती है सीमा पर गोलीबारी की घटनाआंे में इज़ाफा हो जाता है।
मैदान-ए-जंग से मीलों दूर खडे़ होकर मुल्क और जेहाद के नाम पर उकसाने वाले नेता अपने निजी स्वार्थ के लिए अपने सैनिकों से यह खूनी खेल खिलवाते हैं। और हमारे देश के मौनी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपनी सहनशीलता की सारी हदे लांघ कर बोलते होंगे ‘ठीक है’।

प्रशांत सिंह 9455879256

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