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अब बर्दाश्त नहीं होता…

कुछ कहना है ©
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वो चली गई हम सब को छोड़ के। आज वो गई, कल उसकी जगह कोई और होगा, पारसों कोई और। यह क्रम लगातार चलता रहेगा। जब-जब ऐसा होगा तब-तब ज्वार भाटे उठते रहेंगे। ऐसा पहली बार नही हुआ है, बार-बार हुआ है, हर बार हुआ है, और होता भी रहेगा। आखिर ऐसा क्यों होता है ?
अखबार, मैग्ज़ीन, टी. वी. चैनल्स मंे हर जगह यही खबर थी कि उसके साथ पूरा देश था, हर जगह हर कहीं उसके लिए दुआंए मांगी जा रही थी, उसके दोषियों के खिलाफ सख्त से सख्त सजा की मांग की जा रही थी। मै कहता हूं सब झूठ है, ये सिर्फ महज एक दिखावा है। सिर्फ और सिर्फ दिखावा ही है और कुछ नहीं। अगर हम सब उसके साथ थे, पूरा देश उसके साथ था तो क्या ऐसी घटिया और शर्मनाक हरकत करने वाले वे दरिंदे किसी दूसरे ग्रह से आए प्राणी थे, नहीं न! वे भी हम सबके बीच से ही थे, इसी देश से थे।
आज जो इंसान बन कर उस भीड़ के साथ उस लड़की के लिए इंसाफ की गुहार लगा रहे थे, कल उसी भीड के बीच से ही कोई इंसान से हैवान बन कर किसी घिनौने कृत्य को अंजाम दे सकता है। दुष्कर्म, गैंगरेप की यह पहली घटना नही, ऐसी हजारों घटनाएं पहले भी हो चुकी है। कही किसी के साथ छेेड़छाड़ तो किसी के साथ रेप तो कहीं गैंगरेप, कही नाबालिग के साथ रेप/दुष्कर्म जैसी खबरें अखबारों में छपना तो रोज की बात हो गई है। कभी कदार 3 वर्षीय या 5 वर्षीय मासूम बच्चियों का यौन शोषण भी सुनने में आ जाता है। लेकिन पिछले दिनों तो हैवानियत की सारी हदे ही पार हो गईं जब एक अखबार में नवतजात शिशु के साथ दुष्कर्म की खबर छापी। एक अखबार के हवाले से पिछले दिनों एक कान्वेन्ट स्कूल के प्राध्यापक ने 3 वर्षीया मासूम को ही अपनी हवस का शिकार बना डाला। क्या होगा उस मुल्क का जहां स्कूल को शिक्षा का मंदिर एवं एक बेहद पवित्र स्थान माना जाता है वहीं हवस के शिकारी अपना जाल बिछाए बैठे हैं। तब तक हम क्यों नही चेते ? क्या हम तब तक इंतजार करेंगे जब तक किसी हमारे अपने के साथ ऐसा न हो ? या फिर, क्या हमें इसी घटना का इंतजार था ? तब तो मीडिया संस्थानों को मसाला मिल जाता था और हम सब को चाय की चुस्कियों के साथ चटकारेदार खबर।
अब तो दुनिया वालों ने भी दिल्ली जाने के लिए डिस्क्लेमर ज़ारी कर दिया है। भगवान जाने क्या होगा इस देश का। लोग खामखां सरकार को दोष दिए जा रहे थे, लोगों द्वारा महिलाओं की सुरक्षा के लिए कडे़ इंतजाम की मांग की जा रही है, तो क्या महिलाओं की सुरक्षा देश की आर्मी करेगी। और दोषियों के खिलाफ सख्त से सख्त सजा की मांग कर रहे लोगों से मेरा एक सवाल है, आखिर दोषी कौन है ? दोषी हम सब हैं जो अभी तक लगातार होते चले आ रहे इन बर्बर कृत्यों के बावजूद भी नही चेते, ये समाज दोषी है, भविष्य में ऐसी घटनाएं न हो इस के लिए सिर्फ कानूनी तौर से दोषियों को ही बल्कि हम सब को सुधरना होगा क्यांे कि हम सब भी कहीं न कहीं से मानसिक रुप से दोषी हैं।
जिस देश में हम स्त्री को देवी के रुप में छह-छह महीने के अंतराल मंे साल में दो बार पूजते हैं वहीं उसी स्त्री को वस्तु बना कर पेश किया जाता है, भला वहां स्त्रियां महफूज कैसे रह सकती हैं। अभी हालिया, पंजाबी पाॅप सिंगर यो यो हनी सिंह को ही ले लीजिए जिन्होनें हाल ही में ‘बलात्कारी‘ गाना गाया है। या फिर एक मोबाईल कंपनी का विज्ञापन कर रहे विराट कोहली को जो विज्ञापन मंे लड़कियां पटाने के फंडे देते नज़र आ रहे हैं। इन सब के लिए दोषी है हमारा समाज और हम सब। क्यों कि हम जो देखना चाहते हैं वही ये लोग दिखाते हैं और जो ये लोग दिखा रहे हैं उसे हम लोग इंज्वाॅय कर रहे हैं।
अब वक्त आ गया है बदलने का, खुद को बदलने का और समाज को बदलने का। अब वक्त आ गया है स्त्री को वस्तु से वस्तुतः बनाने का। अब घरों में मां द्वारा बेटी को सर से दुपट्टा करने की हिदायद देने के बजाय बेटों को समझाना होगा कि वह किसी भी लड़की को गंदी नज़रों से न देखें। यह हमारे भारतीय समाज की ही देन है जब बचपन में लड़की को खेलने के लिए गुडि़या पकड़ा दी जाती है और बेटों को पैदा होते ही नकली तमंचा। तो लो अब खाओ तमाचा, भुगतो सब।
दिल्ली में उस पीडि़ता के लिए युवाओं ने जिस अदम्य साहस और अद्भुत शक्ति का परिचय दिया था उसकी कल्पना तो सरकार ने कभी की ही नही होगी क्यों कि ऐसे सैकड़ों केस तो हर साल हुआ करते थे। लेकिन अब लोगों ने, खास तौर पर युवाओं ने यह दिखा दिया कि उन्हे यह सब बर्दाश्त नही होगा। अब देश के राजकुमार राहुल गांधी को ही ले लीजिए जो युवाओं की दम पे दहाड़ मारा करते थे, युवा शक्ति के बलबूते देश की तस्वीर बदल देने के दावे करते थे। और जब बारी आई, जब युवा शक्ति एकजुट हो गई समाज मंे बदलाव लाने के लिए, जिस समय युवाओं को सबसे ज्यादा जरुरत थी खुद का नेतृत्व करने वाले की, तब खुद को युवाओं का नेता बताने वाले राहुल गांधी को धरती निगल गई थी या आसमान खा गया था। अरे भइया..! सिर्फ दलितों के घर खाना खाने से और चुनावी रैलियां निकाल कर लोगों से हाथ मिलाने से देश की सूरत नही बदलेगी।
मित्रों, सिर्फ हुजूम एकत्र करने से, कैंडिल मार्च निकालने से ही काम नहीं चलने वाला है क्यों कि समाज एक-दो दिन में नहीं बदलता। समाज बदलना एक बेहद धीमीं प्रक्रिया है जैसे कि अगरबत्ती की आंच में रोटी सेंकना। लेकिन अब चिंगारी भड़क गई है तो उसे बुझने मत दीजिएगा। अब वक्त है समाज को बदल डालने का और उस से पहले खुद को बदल डालने का, क्यों कि यह सब अब और बर्दाश्त नहीं होता……..

प्रशांत सिंह
संपर्क सूत्र-09455879256

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