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ऐ अन्ना फूंक तूने मारी, बाजी केजरी ने मारी
तकरीबन साल भर पहले अन्ना हजारे ने आम आदमी के भले के लिए भ्रश्टाचार विरोधी आन्दोलन का जो बिगुल फूंका था उसका फायदा भले ही अभी किसी को न हुआ हो, लेकिन उनकी टीम के सदस्य रहे अरविंद केजरीवाल ने जरूर उठा लिया। भ्रष्टाचार के विरोध में अन्ना द्वारा उत्पन्न की गई आंधी में केजरीवाल तो अपनी पतंग उड़ा ले गए, लेकिन आम आदमी, अन्ना, और जनलोकपाल बिल अभी जस के तस ही पड़े हुए हैं।
16 अगस्त 2011 के आन्दोलन मंे करोड़ो युवा, बूढ़े और बच्चे अन्ना के समर्थन में जिस तरह सड़को पर आ गए थे उस से इस बात का अन्दाजा लगाया जा सकता है कि उनकी हंुकार मेें कितना दम था । देश के हर शहर, गली, मोहल्ले और यहां तक कि हर घर के बूढ़े हो, बच्चे हो या फिर जवान , हर एक की जुबान में था बस एक ही नाम – अन्ना हजारे, अन्ना हजारे। अन्ना का आन्दोलन जब चरम के दौर मंे था उस वक्त अन्ना टीम के सदस्य और उनके सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी रहे अरविंद केजरीवाल अब उस राजनीति में कूद पड़े है जिस भद्दी राजनीति के दागी नेताओं के विरुद्ध अन्ना की मुहिम में वे बढ़-चढ़ कर साथ दे रहे थे।
जिस तरह अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी ने इतने मामूली से समय में जो पहचान और लोकप्रियता हासिल की है वाकई आश्चर्य जनक है। हालांकि यह बात तो सर्वथा जग-जाहिर है कि उनका नाम और पहचान अन्ना के आन्दोलन की बदौलत ही है। आन्दोलन की फंूक तो अन्ना ने मारी थी लेकिन असली बाजी तो केजरीवाल ने मार ली आन्दोलन को एक नई दिशा देकर। एक समय था जब अन्ना का जादू लोगो पर इस कदर परवान चढ़ा था कि लोग ‘‘मैं अन्ना हूं ‘‘ लिखी गांधी टोपियां सर पर रख घूमते थे, लेकिन आज सब उल्टा है लोग ‘‘मै अरविंद हूं‘‘ लिखी टोपी सर पर शान से रख रहे है, और खुद अरविंद ‘‘मैं हंू आम आदमी‘‘ और ‘‘मुझे चाहिए लोकपाल‘‘ स्लोगन लिखी टोपी लगाकर गुरिल्ला राजनीति करते नजर आ रहे हैं।
हमेशा से ही राजनीति और आन्दोलन एक दूसरे के विपरीत ही रहे हैं लेकिन महत्वाकांक्षी अरविंद दोनांे एक साथ कर रहे हैं, ऐसे में वे कहीं अपनी लुटिया न डुबो बैठें। आन्दोलन से राजनीति में आने का ये शाॅर्टकट रास्ता कहीं उनको धोबी का गधा न बना दे, जो न तो घर का रह जाता है न घाट का।
प्रशांत सिंह
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