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‘‘इक्कीसवीं सदी का भारत ’’ शब्द जुबान में आते ही दिमाग में एक छवि उभर आती है, जिसमें भारत तरक्की करता हुआ एक विकासशील देश है,जिसकी अर्थ व्यवस्था दुनिया की सबसे मजबूत अर्थ व्यवस्थाओं में से एक है। और एक आदर्श लोकतांत्रिक देश है, विश्व में सबसे ज्यादा आबादी वाले देशों में दूसरे स्थान पर है। दुनिया के बेशुमार दौलतमंद भी बसतें हैं यहां पर, और हाल ही में आयोजित हुई F-1 रेस यहां की तरक्की में चार चांद लगा जाती है। कुछ इस तरह की छवि बनती है हमारे दिमाग में इक्कीसवीं सदी के भारत की।
क्या ये 21वीं सदी का वही भारत है जो मौजूदा दौर में देश की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार से जूझ रहा है, जहां पर रोज चोरी, डकैती, मर्डर, रेप, ठगी आम बात हो गई है ? क्या ये वही भारत है जहां स्त्री को देवी का अवतार माना जाता रहा है पर आज जहां घर पर भी बहू-बेटियां सुरक्षित नहीें हैं ? जहां अपने अपनों को ही काट मार रहे हैं ? क्या ये वही भारत है जहां एक जमानें में घरों में ताले नहीं लगते थे और आज आधुनिक तकनीकि से निर्मित तालों से भी घर सुरक्षित नही हैं। एक जमाने में भारत सोने की चिडि़या कहलाता था, जहां दूध-दही की नदियां बहती थीं, और अब क्या कहलाता है हमारा भारत, और अब यहां किस चीज की बहतीं हैं नदियां ? कुछ इस तरह का हो गया है हमारा 21वीं सदी का भारत जहां तरक्की से दो गुनी तेजी से बढ़ रही हैं बुराइयां। क्या बापू ने इसी भारत की कल्पना कर के अंग्रेजों से लोहा लिया था ? क्या बाबा साहेब ने इसी भारत की कल्पना कर के संविधान लिखा था ?
प्रशांत सिंह
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